Happy International friendship Day >>Indian Mythology (पौराणिक कथाओं) ने भारतीय समाज पर सदियों से प्रभाव डाला है। रामायण और महाभारत के हजारों भागों को कभी न कभी किसी बहाने से याद किया जाता है। कई कहानियां उपदेश देती हैं और कई रिश्तों की मिसाल हैं। इसमें भी पौराणिक कथाओं से मित्रता का उदाहरण मिलता है। अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस पर, पौराणिक कथाओं में याद किए गए कौन से किरदार हैं। आइये जानते हैं
सच्ची मित्रता क्या हैं
सच्चा मित्र वह होता है जो हमेशा साथ रहता है, और विपरीत परिस्थितियों में छोड़ के नहींजाता है, सच्चा मित्र अपने जीवन में निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है और उसे अपनी कमियों से अवगत कराता है. न की sunday , saturday के पार्टी के लिए याद करें , भारतीय समाज में ऐसे कई सच्चे मित्र हैं। कृष्ण और सुदामा की मित्रता की तरह, सुग्रीव और राम की मित्रता भी किसी भी परिस्थिति में हमेशा हमें उनकी मदद करनी चाहिए. तो आइये हमारे इस पोस्ट में जानते हैं ,, सच्ची मित्रता की कहानी
सच्ची मित्रता में नहीं होता है स्वार्थ का समावेश
सच्चा मित्र बिना स्वार्थ के आपके साथ रहता है और आपके हित की चिन्ता करता है, चाहे लाख लड़ाई हो जाए। यदि आपके दोस्त में ये कुछ बातें हैं तो वह आपका असली दोस्त है। वास्तविक दोस्ती में स्वार्थ छिपा नहीं है। कृष्ण और सुदामा की तरह सच्ची मित्रता में स्वार्थ नहीं होता, मित्र के प्रति छल कपट की भावना नहीं होती। मित्र का संबंध खुद बनाया जाता है, इसलिए यह सभी संबंधों से अधिक महत्वपूर्ण है।
सच्ची मित्रता का अर्थ है कि मित्र हर समय उसके साथ रहता है, चाहे परिस्थितियां उसके अनुकूल हों या नहीं। आजकल हर काम सिर्फ दिखावा है और हर व्यक्ति से जुड़ने के पीछे स्वार्थ है। 100 में से 10 प्रतिशत लोगों की मित्रता निस्वार्थ है, यह बहुत कम है।
ऐसे में सही मित्र को सच्चे मित्र से अलग करना जरूरी है। जहां स्वार्थ स्पष्ट नहीं है हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मित्र हैं। हर व्यक्ति के जीवन में एक दोस्त होना चाहिए। हां, एक असली मित्र जीवन बदल देता है। मित्र किसी भी व्यक्ति का बन सकता है। किसी से मित्रता करना सिर्फ कुछ खाना और पीना नहीं होता। हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मित्र हैं। हर व्यक्ति के जीवन में एक दोस्त होना चाहिए।
कृष्ण सुदामा की बपचन से दोस्ती
हिंदू पौराणिक कथाओं में कृष्ण सुदामा सबसे पहले मित्रता का जिक्र करते हैं। कृष्ण और सुदामा बचपन से दोस्त थे। इनकी दोस्ती आर्थिक और सामाजिक विभेदों से परे थी। सुदामा और कृष्ण एक साथ आचार्य संदीपन के आश्रम में पढ़ते थे। दोनों अच्छे दोस्त बन गए। बाद में कृष्ण द्वारिकाधीश बनने पर सुदामा की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। पत्नी और बच्चों का पेट पालना कठिन था। वे तंग हो गए और श्रीकृष्ण से मिलने गए।
कृष्ण ने अपने सखा की मित्रता पर गर्व किया
कृष्ण से बहुत कठिन से मिले, लेकिन दोनों मित्रों की लंबी मुलाकात में वे अपनी आर्थिक स्थिति को कृष्ण से नहीं बता सके. लौटते समय वे इसी चिंता में रहे कि घर में पत्नी से क्या कहेंगे कि उन्होंने सहायता क्यों नहीं मांगी। लेकिन कृष्ण की मदद उनके घर पहुंचने से पहले ही आई थी। सुदामा घर पहुंचते ही आश्चर्यचकित हो गईं। अब उनका घर एक सुंदर महल था। सुदामा अपने दोस्त की कृपा से प्रसन्न हो गए जब पत्नी ने कृष्ण की कृपा का बखान किया ।
श्री राम और सुग्रीव की मित्रता
रामायण में सुग्रीव और राम की मित्रता भी बहुत अच्छी है। राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता की हरण के बाद ऋषिमुख पहाड़ियों में अपनी पत्नी की तलाश में भटक रहे थे। राम और सुग्रीव वहीं मिले। इसके बाद दोनों एक-दूसरे का साथ जीवन भर निस्वार्थ भाव से निभाते रहे। राम ने सुग्रीव को अपने मित्र होने के बावजूद भी ईश्वर की तरह सम्मान दिया. राम ने सुग्रीव को भक्त के साथ-साथ दोस्त भी बनाया ।
अर्जुन के सखा के रूप में भगवान कृष्ण
कृष्ण और अर्जुन के बीच मित्रता का रिश्ता ईश्वर और भक्त से भी अधिक था। अर्जुन ने कृष्ण को ईश्वर के रूप में ही आदर दिया, लेकिन कृष्ण ने उन्हें सखा रूप में स्नेह दिया। कृष्ण ने अर्जुन और पांडवों का हमेशा साथ दिया। वे अर्जुन से बहुत प्यार करते थे। गीता का ज्ञान देने के अलावा, वे अर्जुन को पूरे युद्ध में उनके साथ रहे और उनका मार्गदर्शन करते रहे।
महाभारत युद्ध में पार्थ अर्जुन का सारथी श्री कृष्ण
महाभारत का युद्ध १८ दिनों तक चला ! जिसमें कौरवो और पांडव के बीच युद्ध का एक महायुद्ध था , इस युद्ध में शुरुवात में कौरवो का पलड़ा भारी था , क्योकि कौरवो में पांडव पक्ष के अपेक्षा ज्यादा सुरवीर थे ! अगर श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी नहीं होते या पक्ष में नही होते तो यह महभारत का युद्ध पांडव हार जाते ,, कहा जाता हैं की >>> अगर आपके( पार्थ अर्जुन ) ज़िन्दगी में भागवान कृष्ण जैसे मित्र , सारथी या सलाहकार हो तो आप हारे हुए महाभारत भी जीत सकते हैं
कर्ण-दुर्योधन की दोस्ती
महाभारत में दुर्योधन जैसे बुरे चरित्र को भी एक अच्छाई मिलती है, जैसे कर्ण। जिस तरह दुर्योधन ने कर्ण को समाज में वह सम्मान दिलाया जिसके लिए कर्ण तरसते रहे, उसी तरह कर्ण ने हर समय दुर्योधन का साथ दिया, भले ही वे कई बार उससे वैचारिक रूप से सहमत नहीं रहते थे। दोनों की मित्रता आज भी शानदार है ।
राम और विभीषण की मित्रता
पौराणिक कथाओं में भी राम और विभीषण की मित्रता एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। जब विभीषण को उनके भाई रावण ने त्याग दिया और एक भक्त के रूप में राम से मिलने पहुंचे, तो राम ने उसे मित्र का दर्जा दिया और उनसे हमेशा सखा के रूप में ही व्यवहार किया। तब से विभीषण हमेशा राम के साथ था।
आशा करता हूँ ये जानकारी क्या हैं सच्ची मित्रता ? आपके लिए हेल्फ फूल रही होगी जिससे आप आसानी से समझ गये होगे कि सच्ची मित्रता के बारे में ये जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तो के साथ Facebook, WhatsApp, Twitter , Instagram और अन्य सोशल मीडिया पर शेयर करें ताकि ये जानकारी ज्यादा लोगो तक पहुचाई जा सके।
FAQ
Question: – श्री कृष्ण और अर्जुन का क्या रिश्ता था ?
Answer :- श्री कृष्ण की बुआ कुंती का पुत्र था अर्जुन यानि श्री कृष्ण का भाई था और घनिष्ट मित्र भी था !
Question: – गीता में कृष्ण ने अर्जुन से क्या कहा ?
Answer :- श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मनुष्य को अपनी सभी इंद्रियों को नियंत्रित करके स्थिर होना चाहिए, क्योंकि जिस व्यक्ति की इंद्रियां नियंत्रित होती हैं, उसकी बुद्धि स्थिर होती है। मैनेजमेंट सूत्र: जो इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है, मनुष्य की बुद्धि स्थिर रहती है।
Question: – क्या कुंती कृष्ण की सगी बुआ थी ?
Answer :- हाँ , कुंती भागवान श्री कृष्ण की बुआ और पांडवो की माता थी !